बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
उत्तर -
पोच पल्ली पोचमपल्ली साड़ी जिसे पोचमपल्ली इक़त के नाम से भी जाना जाता है। यह एक पारम्परिक परिधान है जो तेलंगाना राज्य के नलगोना जिले में भूदान पोचमपल्ली से निकलता है। इन साड़ियों को उनके इकत विशिष्ट प्रिंट से अलग किया जाता है। इकत एक पारंपरिक तकनीकी है जिसका उपयोग कपड़ों को रंगने के लिए करते हैं। रंगने के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया रेसिस्टंट डाइंग के रूप में जानी जाती है। इसमें डाई को पूरे कपड़े में फैलने से रोकने के लिये कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। रंगे क्षेत्रों हुए का उपयोग विशिष्ट पैटर्न और रूपांकनों को बनाने के लिए करते हैं। इस तकनीकी का उपयोग सभी पोचमपल्ली साड़ियों में यहाँ और वहाँ मामूली बदलाव के साथ करते हैं।
पोचमपल्ली इकत की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि
यह तकनीकी दुनिया की सबसे पुरानी तकनीकियों में से एक है। इस शैली का उपयोग करने वाले सबसे पुराने कपड़े के नमूनों में से एक मिस्र का है। ममियों का पता लगाने के दौरान इतिहासकारों ने लिनन की पट्टियों की खोज की थी। इन पट्टियों को पहले मोम में भिगोया गया और फिर एक प्रकार की तीक्ष्ण लेखनी की मदद से उन प्रतीकों और डिजाइनों को खरोज दिया गया। फिर इन पट्टियों को खून और राख की मदद से रंगा गया; बचे हुए मोम को निकालने के लिये धोया गया।
अंतिम उत्पाद में पूरी सतह पर अमूर्त डिजाइन थे। एशिया में चीन ने इस तकनीकि को लोकप्रिय बनाया क्योंकि तांग राजवंश में इसका व्यापक रूप में उपयोग किया गया था। तकनीकी को तब तक रेशम मार्ग के माध्यम से भारत में पेश किया गया था।
पोचमपल्ली इकत साड़ियों को प्रमुख रूप से 1800 के दशक में लोकप्रिय बनाया गया था। रेशम मार्ग के व्यापारी अक्सर इन डिजाइनों को शक्ति और सम्पन्नता से जोड़ते थे।
अधिकांश इकत डिजाइन पूरी तरह से सारगर्मित होते हुए भी इनमें विशिष्ट प्रारूप और प्रिंट का उपयोग नहीं किया जाता है। यह कहा जा सकता है कि अमूर्त डिजाइन तत्व अपने आप में एक मूल भाव है क्योंकि इसे साड़ी की सतह पर दोहराया जाता है।
पोचमपल्ली के कारीगर इन साड़ियों के कारीगर पोचमपल्ली में ही अधिकांशतः रहते हैं। आंध्र प्रदेश के 80 गाँवों का एक समूह है। यह गाँव पारंपरिक करघे से लैस है जिनकी संरचनात्मक डिजाइन सदियों पूर्व की है। यह व्यापार पीढ़ी दर पीढ़ी सौपे जाते हैं। यह क्षेत्र सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है।
पोचमपल्ली इकतों का निर्माण इनके निर्माण की विधि दिलचस्प है। यह इन्हें अन्य कपड़ों से अलग करती है।
इसमें ताने और बाने के धागे पहले रंगीन या रंगे होते हैं तत्पश्चात कपड़े बनाने के लिये करघे में जोड़े जाते हैं। भारत में इक़त को बाटिक या मोम की मदद से बनाते हैं।
वाटिक एक पारंपरिक तकनीकी है जिसमें कैनिंग नामक एक नुकीले उपकरण की मदद से डाट्स या रेखाएँ बनाई जाती हैं। प्रतिरोध को कैप नामक ताँबे की मोहर की सहायता से मुद्रित किया जाता है। इसके साथ प्रयोग किया जाने वाला मोम रंगों का प्रतिरोध करता है। इसी से पैटर्न बनाए जाते हैं।.
पोचमपल्ली इकत साड़ी के अतिरिक्त इकत को सलवार, अनारकली स्कर्ट और लहंगे जैसे कई अन्य भारतीय जातीय वस्त्र बनाने के लिये भी किया जाता है। समकालीन उपयोग भी इस प्रिंट को इंटीरियर डिजाइन या सजावट में उपयोग करने की अनुमति देता है। इक़त प्रिंटेड बेड स्प्रेड या कुशन कवर के साथ छोटे-छोटे आसनों का मिलना भी सामान्य बात हो गयी है।
पोचमपल्ली साड़ी अब पोचमपल्ली हैंडलूम टाई एंड डाई सिल्क साड़ी मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के साथ-साथ पोचमपल्ली हैंडलूम वीवर्स कोआपरेटिव सोसायटी लिमिटैंड की पंजीकृत सम्पत्ति है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रिंट कपड़ों और सजावट दोनों उद्देश्यों के लिये माना जाता है।
पोचमपल्ली साड़ी के रखरखाव का सबसे अच्छा तरीका डाइक्लीनिंग है। यह टाई एण्ड डाई के प्रभाव को लम्बे समय तक बरकरार रखता है।
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